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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 21)





उस ड्राइवर और अनि के वहां चल जाने के थोड़ी ही देर बाद अरुण पहाड़ी की चोटी पर नजर आ रहा था। हालांकि उसे अनि के साथ किये गए अपने व्यवहार का थोड़ा अफसोस था। उसका चेहरा अजीब सी चिंता से घिरा हुआ था, पिछले कुछ ही दिनों में यह उसकी लगातार चौथी या पांचवी नाकामयाबी थी। वह बच्चों को बचा सकने में नाकामयाब रहा, अपने पद से हाथ धो बैठा, बाकी के बच्चों को ढूंढ पाने में असफल रहा, और उस ब्लैंक ने उन मासूमो पर भी कोई रहम नही दिखाया। उसके बाद तो जैसे नाकामयाबियों ने उसका दामन ही थाम लिया था, एक नीडल मिली पर उससे कोई खास मदद न मिल सकी, मानो जैसे वो भी बस डिस्ट्रैक्शन के लिए यूज़ किया गया था। उसके बाद उस ब्लैंक की चाल में फंसकर नरेश को मारने पहुँच गया, बेचारे नरेश को तो ये भी नहीं समझ आ रहा था ब्लैंक ने उसे इतनी आसानी से कैसे छोड़ दिया…! क्योंकि वह जानता था कि अरुण, नरेश को देखते ही मार डालेगा, मगर अनि ने उसे रोक लिया। पिछली रात से अनि अरुण को तीन तीन बार अपनी जान जोखिम में डालकर बचाने को दौड़ा चला आया। न कोई रिश्ता न कोई नाता.. कौन है वो न उसका अपना है न पराया है! मगर अरुण को ये पसन्द नहीं कि कोई उसके लिए अपने आपको जरा सा भी नुकसान पहुचाएं, क्योंकि वो अरुण है! उसके बेइंतहा क्रोध के पीछे एक मासूम सा दिल है जो किसी मासूम को भी चोट पहुँचाने से डरता है।

अरुण पहाड़ी की चोटी से उतरते हुए दूसरी ओर चला जा रहा था। आसमान में चाँद, तारो की मंडली लिए चमक रहा था। दूर दूर तक मोटे वृक्षों के अतिरिक्त कोई नजर आया। थोड़ी दूर जाकर वह एक बड़ी चट्टान पर बैठ गया।

अरुण अभी भी असमंजस की स्थिति में था, तीन-चार दिन से खाना न खाए होने के कारण  उसे कमज़ोरी महसूस हो रही थी। बहुत जोर की प्यास लगने के कारण पानी की तलाश में वह पहाड़ी से नीचे उतरने लगा। थोड़ी ही दूर पर पानी के कल-कल की मधुर स्वर सुनाई दे रही थी, अरुण बड़ी सावधानी से उस ओर बढ़ने लगा क्योंकि जंगल में जल स्त्रोतों के किनारे खतरनाक एवं हिंसक जानवरो के पाए जाने की सम्भावना बहुत अधिक होती है। उसका सिर बहुत ही भारी लग रहा था, लगातार तीन-चार दिन तक जागते रहने के कारण आंखे लाल हो चुकीं थीं।

अरुण उस छोटे से झरने के दूसरी ओर नीचे उतरने लगा, गहरे नीले रंग के पानी में चाँद यूँ झिलमिला रहा था जैसे अब यही उसका नया परमानेंट बसेरा हो। झरने की झर-झर मन को थोड़ी शांति प्रदान कर रही थी। अरुण ने जी भर के पानी पिया फिर आँख मुँह धोने लगा, ठंडे पानी ने उसके अंतर्मन को काफी राहत पहुचाई, वह वहीं पास की नरम घास पर बैठ गया, प्रकृति की गोद में कुछ पल के लिए उसकी सारी चिंता काफूर सी हो गयी बस यही मौका था बोझिल आंखों को बंद होने के लिए। अरुण कब बेफिक्र सा गहरी नींद की गोद में चला गया उसे कुछ पता न चला।

सुबह हो चली थी, फिर भी सूरज की रश्मियों को वृक्षों को पार करते हुए पहाड़ी के तल तक पहुँचने में थोड़ा वक्त तो लगना ही था। रश्मियों की हल्की सी जुम्बिश होते ही अरुण उठ खड़ा हुआ, उसने जल्दी से आंख मुँह धोकर आसमान की ओर देखा। उसके चेहरे पर चिंता के भाव पुनः उभर आये, मानो उसने सोकर कोई बड़ी गलती कर दी हो।

"शिट! ये क्या कर दिया मैंने! मुझे उस ब्लैंक को यमराज तक पहुचाएं बिना नींद कैसे आ गयी?" अरुण ने अपने गालों पर जोरदार थप्पड़ जड़ते हुए चिल्लाया। "क्या मैं कुछ भी ढंग से नहीं कर सकता? वे सारे बच्चे… उनकी उस दर्दनाक मौत के बोझ तले दबे रहने पर भी मैं सो कैसे सकता हूँ?"

अरुण बुरी तरह बेचैन हो चुका था, उसे खुदपर बहुत अधिक गुस्सा आ रहा था। वह फिर से पानी में उतरकर आँख-मुँह धोने लगा, उसने अपने बालों के साथ कपड़ो को भी भीगा लिया था।

"बस बहुत हुआ ब्लैंक! तेरे दिन खत्म हुए, मैं जानता हूँ तू मुझपर बहुत नजर रख रहा है। मैं अपने इन्ही हाथों से तेरी आँखे नोंच नहीं लिया तो मेरा नाम अरुण नहीं।" अपने दोनों हाथों को पंजे की आकार में मोड़कर घूरते हुए अरुण चिल्लाया। "तेरी मौत तेरे पास आ रही है, अब अपनी जितनी ताक़त हो, कोशिश हो सब लगाकर देख ले! अब अरुण नाम का ये तूफान तेरी हस्ती को उड़ा ले जाएगा।"

अरुण का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था, उसके बाएँ हाथ की बाँह अब तक ठीक न हो पाई थी, उसने अपनी पिस्तौल को निकालकर उसपर गर्म साँसे छोड़ता हुआ पुनः कमर में खोंस लिया और तेजी से पहाड़ी की दूसरी ओर चढ़ने लगा।

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'मुझे यकीन नहीं होता कि नरेश जी और उनकी बेटी मारी गयी।' पुलिस हेडक्वार्टर में बैठी मेघना उंगलियों में कलम नचाते हुए सोच में डूबी हुई थी।

"मैडम! आदित्य सर को होश आया गया है।" एक कांस्टेबल ने बताया। यह सुनते ही मेघना की तंद्रा भंग हुई।

"ठीक है। अभी तुम सब जनाक्रोश को काबू करने की कोशिश करो, हमें और अधिक पुलिस पावर की जरूरत है।" मेघना ने बिना उसकी ओर देखे ही कहा। "मैं हॉस्पिटल जाकर आदित्य मिल आती हूँ, इस सिचुएशन को संभालने के लिए हमें उसकी जरूरत पड़ेगी।"

"ठीक है मैडम! जय हिंद!" इतना कहते ही सैल्यूट कर वह कॉन्स्टेबल वहां से निकल गया।

'ओफ्फ! पिछली कई रातों से ढंग से सो नहीं पाई हूँ, अभी तो ठीक से मेरे जख्म तक नहीं भरे हैं। डॉक्टर ने आराम करने की सख्त सलाह दी है पर ऐसे में कोई कैसे आराम कर सकता है? पता नहीं हमारी इस देवभूमि को किसकी नजर लग गयी! अब तक हाथ में कोई सुबूत नहीं लगा, और जो मालूम करना था वो पता नहीं किस अजनबी ने बता दिया और वहां जाते ही ये सब हो गया। कुछ भी समझ नहीं आ रहा। मुझे जल्दी से आदि से मिलना होगा, उसे इस सदमे से बाहर आकर अपनी ड्यूटी निभानी होगी, जैसे मैं कर रही हूँ पर इस वक़्त उसे किसी अपने की जरूरत होगी।' अपने विचारों से बाहर निकलते हुए मेघना हेडक्वार्टर से भी बाहर निकल गयी।

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मेघना सीधा धड़धड़ाते हुए आदित्य के कमरे में चली गयी, वहां आदित्य को पुलिस की वर्दी पहने तैयार होता देख वह अचंभे में पड़ गयी। वह कमरे में घुस गई मगर आदि का ध्यान उसकी ओर नहीं गया।

"हे आदि! कैसे हो?" मेघना ने उसे अपनी स्थिति का आभास कराने हेतु पूछा।

"बस तुम्हारे जैसा। जय हिंद मेघ!" आदित्य ने सैल्यूट कर कहा।

"वेल! अभी हम दोनों ही ठीक नहीं है और अब तक हमें स्पेशल फोर्से नहीं मिली है। अब यह सारी स्थिति हमें ही संभालनी होगी।" मेघना ने स्थिति समझाते हुए उसे उसकी जिम्मेदारी का बोध कराया।

"हाँ जानता हूँ! अंकल ने सबकुछ समझा दिया है।" आदित्य ने मुस्कुरानेन्की कोशिश करते हुए कहा।

"क्या? पापा यहां आए थे?" मेघना हैरान हुई।

"हाँ! वे जाने ही वाले थे मगर जब उन्होंने टीवी पर मेरी ये हालत देखी तो दुबारा हॉस्पिटल आ गए।" आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा। "अंकल बहुत अच्छे हैं।"

"अभी वे कहा हैं?" मेघना उत्साहित होते हुए व्यग्रता से पूछी।

"ये तो पता नहीं, पर कुछ खा पीकर दवाई ले लो, हमें अपने काम पर भी निकलना है। ये लोग ज्यादा देर तक इस उग्र भीड़ को नहीं संभाल पाएंगे।" आदित्य अपनी दवाइयां लेकर, पानी गटकते हुए बोला।

"हम्मम!" कहते हुए मेघना वहाँ से बाहर निकल गयी।

"सुना है कमिश्नर भी यहां आने वाले हैं?" बाहर आते हुए आदित्य ने पूछा।

"मुझे नहीं मालूम!" मेघना ने चलते-चलते ही जवाब दिया।

"हमें हर एक केस की बारीकी से छानबीन करनी होगी ताकि हम कोई सुराग ढूंढ सकें। मैं नहीं चाहता मेरी तरह कोई और भी अपना सबकुछ खो दे!" कहते हुए आदित्य भावुक सा हो गया।

"पिछली जो भी घटनाएं हुई हैं उनमें कोई न कोई सम्बन्ध अवश्य ही है आदि! तुम्हें जिस कार पर शक हुआ था तो घाटी में जली हुई, बिल्कुल ध्वस्त अवस्था में मिली थी मगर वहां किसी के होने का कोई निशान नहीं था।"

"तो क्या कार अपने आप चल रही थी?" आदित्य हैरान हुआ।

"पता नही आदि! लेकिन अगर ये कोई गेम है तो हम अभी बहुत पीछे हैं। हम अभी उसकी चालों को समझ भी नहीं पा रहे हैं। इन सब में अरुण और वो लड़का अनि कहाँ फिट होते हैं यह भी समझ नहीं आ रहा है।" कहते हुए मेघना ने कार का ड्राइविंग डोर ओपन किया। उसकी आवाज में चिंता झलक रह थी।

"हम अब और कुछ बुरा नहीं होने देंगे मेघ!" आदित्य काफी भावुक हो चुका था।

"जो हो चुका है वो आलरेडी इतना अधिक है कि हालात बहुत ज्यादा बुरे होते जाएंगे, राजनीति से जुड़े लोग इसका अलग फायदा लेने पर जुटे हुए हैं।" मेघना ने चिंतित स्वर में कहा।

"बस पंद्रह दिन पहले ही कितनी शांति थी यहां, अचानक से यह तूफान कैसे उठ गया! कुछ भी समझ न आ रहा। मैंने अपना आखिरी परिवार भी खो दिया।" आदित्य की आँखों में पानी भर आया।

"हम जैसा सोचते हैं हमेशा वैसा नहीं होता आदि! ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जान सकता। और हाँ! मैं भी परिवार हूँ तुम्हारी।" कहते हुए मेघना ने कार स्टार्ट किया, आदित्य उसका मुंह देखता रह गया।

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नरेश रावत के निवास पर!

भीड़ और भी ज्यादा बढ़ने लगी थी, लेकिन सबसे खास बात पुलिस को कमरे में धमाके कोई सुबूत नहीं मिले थे। लोग अटकलें लगा रहे थे कि बाहर से मारकर उन्हें उनके ही घर पर फेंक दिया गया मगर कोई बेवकूफ ऐसा क्यों करेगा? किसी को मारकर, उसके घर ही क्यों छोड़ आएगा जब कि वो एक जनप्रसिद्ध नेता हो?

मीडिया की अटकलें और लोगो के सवालों ने पुलिस की नाक में दम कर दिया था, विपक्ष अपने इस महान नेता की मौत का आरोप वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी पर लगाकर मुख्यमंत्री जी से इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाने लगे। बाकी तिल का ताड़ बनाने का काम मीडिया का था ही, जिसे वह अपना परमधर्म मानकर निभाने में जुटी हुई थी।

थोड़ी ही देर में वहां एक पुलिस की गाड़ी रुकी जिसे देखते ही सारे रिपोर्टर उसकी ओर दौड़ पड़े। गाड़ी का गेट खुला, उसमें से कमिश्नर बाहर निकलें और रिपोर्टर भूखे भेड़िये की तरह झपट पड़े।

"सर-सर! ये सब क्या हो रहा है? जब यहां हालात ऐसे हैं तो कोई ऐसे माहौल में कैसे जी सकता है? क्या आपकी पुलिस बुरी तरह नाकाम हुई है? सर! आप यह केस सेना को क्यों नहीं सौंप देते? क्या किसी पुलिसकर्मी की मिलीभगत की आशंका है? यह अचानक से यहां बच्चों, फिर जननेताओं को मारा जाने लगा, घण्टाघर के आसपास की सारी दुकानें उजड़ गयी! आपका पुलिस प्रशासन क्या कर रहा है? कि हम यूँ ही मासूमों बेगुनाहों को शव में बदलते देखेंगे?" सारे रिपोर्टर एक साथ ही झपट पड़े, जिससे जो सवाल पूछते बना, सभी ने एक ही सांस में पूछ लिया।

"मैं जानता हूँ हालात ठीक नहीं है। मगर हमें संयम से काम लेना होगा…!" कमिश्नर ने बोलना शुरू किया।

"मगर जब एक के बाद एक लगातार ऐसी हृदयविदारक घटनाएं होती रहेंगी तो कोई कैसे संयम रख सकता है? हमारे मन मे जब तक असुरक्षा का भाव घर किये बैठा रहेगा हम कैसे संयम बरत सकते हैं?" एक रिपोर्टर लड़की ने कमिश्नर की बातों को काटते हुए गुस्से से कहा।

"हमारी पुलिस पूरी कोशिश कर रही है। हमने हर बार पूरी कोशिश की है मगर अचानक से शुरू हुए इस जाल में और अधिक उलझते जा रहे हैं। हमारे पुलिस के बहादुर सिपाही, जिनमे से कुछ अभी अस्पतालों में भी हैं, वे बेखौफ होकर मौत का सामना कर रहे हैं। वे भी इंसान हैं, उनका भी परिवार है, वे ये सब किसलिए करते हैं? आपकी सुरक्षा के लिए! आप घर में सुरक्षित रहें इसलिए, तभी आप पुलिस की एक नाकामी पर झंडा और बैनर लेकर रोड जाम करने आ पाते है।

इन पिछले हफ़्तों में जो कुछ हुआ उसका हमें बेहद अफसोस है, नरेश जी की कमी हम सबको भी खलेगी मगर इस वक़्त हमें आपका सहयोग चाहिए, यदि आप हमारे साथ होंगे तो हम उस अपराधी तक जल्दी पहुँच सकेंगे। माना कि कानून के हाथ लंबे होते हैं मगर नाक, कान और  मुँह मीडिया का ही बड़ा होता है, आपको हमारी मदद करनी होगी। कानून के लंबे हाथों को उसके नाक, कान और मुँह सभी चाहिए।

जल्द ही वह अपराधी सलाखों के पीछे होगा और आगे से ऐसी कोई घटना न हो इसके लिए पूरे देहरादून में चौबीस घण्टे का कर्फ्यू घोषित किया जाता है। वे बच्चे और नरेश जी जितना आपके थे, उतने ही हमारे भी हैं। इन सबकी इस हालत के पीछे जिसका भी हाथ है, कानून शीघ्र ही उसकी गर्दन तक पहुँचेगा।" सभी को समझाते हुए कमिश्नर ने विश्वास दिलाया और फिर वे हादसे की जगह यानी नरेश जी के फर्स्ट फ्लोर पर चले गए।

"चलो! कमिश्नर सर ने काफी संभाल दिया, अब कर्फ्यू लगाने की वजह से वह जनता को नुकसान नहीं पहुँचा सकेगा।" आदित्य ने मेघना से कहा। अब तक वे दोनों भी यहीं आ चुके थे।

"क्या पता यह उसी अपराधी की चाल हो जिसमें हम जानबूझकर फंस रहे हों!" मेघना ने शक जाहिर किया।

"क्या मतलब?" आदित्य चौंका।

"आज तक हमने जो कुछ किया कहीं न कहीं वो उसके ही अनुसार हुआ, कहीं इस बार भी ऐसा ही हुआ तो?"

"मगर हम ये सब कमिश्नर को नहीं समझा सकते!"

"जानती हूँ!"

"तो अब हमें क्या करना होगा?"

"आर्डर तो मानना ही होगा, मगर अब और अधिक सजगता की आवश्यकता है। हमें अपने इन्वेस्टिगेशन को अलग तरीके से जारी रखना होगा।" मेघना ने कहा।

"कौन सा इन्वेस्टिगेशन?" आदित्य फिर हैरान हुआ।

"आदि! चलो फिलहाल ऊपर से मिले ऑर्डर फॉलो करो।" मेघना ने उसपर चिल्लाना चाहा फिर संयत स्वर में बोली।

"मुझे ये समझ नहीं आता कि वह लड़का वहां कैसे पहुँच गया?"

"कौन सा लड़का?"

"वही अनि, जिसने तुम्हें बचाने में मेरी हेल्प की थी।"

"तुम उसपर शक कर रहे हो?"

"इस वक़्त किसी पर भरोसा नहीं कर सकते मेघ! मैं तो बिल्कुल भी नहीं कर सकता।" अचानक ही आदित्य का लहजा कठोर हो गया।

"हाँ! जानती हूँ। ऐसी हालत में कोई किसी पर भरोसा नहीं करता, और हम किसी को भी जाने नहीं दे सकते।" मेघना ने प्यार से कहा।

"थैंक यू मेघ!" कहता है आदित्य वहां से आगे निकल गया।

"शायद ये चौबीस घण्टे बहुत भारी पड़ने वाले हैं, पर किसपर? हमपर या उस अपराधी पर? मैं अब अपनी जनता को कोई नुकसान पहुँचते नहीं देख सकती।" मेघना बुरी तरह भावुक हो चुकी थी, सभी लोग अपने घर जाकर कमरों में कैद होने लगे थे, थोड़ी ही देर बार पूरे देहरादून में कब्रिस्तान सा सन्नाटा पसर गया।

क्रमशः….


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5 Comments

Raziya bano

14-Aug-2022 10:46 AM

Bahut sundar rachna

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Abhilasha Deshpande

14-Aug-2022 06:12 AM

थोडा रुलाने वाला भाग था. लेकिन अच्छा लिखा गया है.

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थोड़ा इमोशनल भाग था। वैसे इस भाग में सही ही बोला है, की देखते ही देखते क्या हो जाता है। बिल्कुल कोरोना टाइम में पुरे देश में जो हुआ, उस बात से भी इसे समझा और जाना जा सकता है। देखते है मेघ का सोचना कहीं सही तो नहीं, आगे क्या होगा देखते है।

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